रविवार, 11 दिसंबर 2011

एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है....


एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है,

अपनी मंजिल का जिद्दी, साहिल का जिद्दी,
कभी आगाज का जिद्दी, कभी अंजाम का जिद्दी,
मुझे परेशां करता है, मुझे पर चिल्लाता है,
ना खुद सोता है, ना मुझे सुलाता है,
किसी कशमकश में है, किसी उलझन में है,
कितनी आतुरता है उसमे, वो वक़्त से अनबन में है,

देर है हालात की, वो मुझसे ऐठा है,
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है,

शायद वही है जो मुझे जिंदा रखता है,
मेरी हर हार पर मुझे शर्मिंदा रखता है,
कहने को लब्ज भी नहीं जानता है वो,
पर बिना कहे भी नहीं मानता है वो
मै रुकू तो मुझे नकेलता है हुज़ूर,
थक जाऊ तो मुझे धकेलता है हुज़ूर ........

हार ना जानू मै, मुझसे ये हर पल कहता है,
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है..........

                                     कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 
    

  

1 टिप्पणी:

Atul ने कहा…

Kafi achi kavita likhi hai.mein Apka fan ho gaya kavitayien padhkar.

Har kavita me kuch kadvi sachai chhupi hai ya apne ander ki awaz.