गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पाकर अपार शोहरत, मैं तन्हा ही रहा.....


हारकर अपने जीवन की शाम कर रहा हूँ,
कुछ थका थका हूँ यारो, आराम कर रहा हूँ,

बेदिल होकर बसर है कई काफिर इस जहाँ में,
खुद अपनी नज़र में गिर रहा हूँ ऐसा काम कर रहा हूँ,

गूजती है सिसकियाँ, दीवारों से सुनो,
रोकर जिंदादिली को यू, बदनाम कर रहा हूँ,

कई मैखानो में दफ्न है, बुझदिली के निशाँ.
अपनी जिंदगी को बेनामी का, जाम कर रहा हूँ,

पाकर अपार शोहरत, मैं तन्हा ही रहा
अपने वजूद को जलाकर गुमनाम कर रहा हूँ,

आगाज-ए-मोहब्बत उसने बेवफाई से किया,
मैं मिटाकर अपनी हस्ती को अंजाम कर रहा हूँ
मैं मिटाकर अपनी हस्ती को अंजाम कर रहा हूँ...............


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




1 टिप्पणी:

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