सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

इबादत की इजाजत दे दो

आज भी जहन में महफूस है तेरी तरकश के तीर,
तेरी हर नापाक हरकत से निगाहों से बही है पीड़
क्या तालीम तेरी तुझको बना बैठी है आज
तेरे बेशुमार मकानों में, एक नहीं है नीड़

हुस्न की महफ़िल में जिनका बोलबाला मिला
तसल्ली से परखा, तो दिल काला मिला
और तन्हा नाजुक से, होठो को सी के बैठे थे जो,
इस प्रभात की अँधेरी जिंदगी को उन्ही से उजाला मिला...



खुदा खुद दफ़न की कगार पर है.क्या?
क्यों चाँद जल रहा है सूरज से तेज आज.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




2 टिप्‍पणियां:

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut khub
bahut hi behtarin kavita hai
fully dhamal
aapko mera salaam....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut hi sundar rachna hai
prabhavshali
dil tak pahuchnewali....