रविवार, 8 मई 2011

सूखा पानी

उसकी गैर से मुलाकात हुई थी ,
सात फेरो की करामात हुई थी,
खुदा खुद रोया सुबक सुबक के,
सबूत है दोस्तों, उस रात बरसात हुई थी.

उसकी आँख को फड़कते देखा था यारो
मुझसे पल्लू तक झटकते देखा था यारो,
गैर की बाह समंदर सी थी चाहे उसके लिए,
पर बिन पानी मछली सा तड़पते देखा था यारो

कच्ची कच्ची ईटो का पक्का घरोंदा बनाते है चल
अरमान पाल के एक दिल में, समंदर में उतर जाते है चल,
मानता हूँ लहरे मुझे भिगो देंगी जरूर
पर एक शौक ऐसा दिल में सजाते है चल

जब जब हमने प्यार किया था,
एक राज एक एक सार लिया था,
हुआ होगा तुम्हे व्यापार में घाटा,
हमने घाटे का व्यापार किया था

आज रात मुझे सोने ना दिया
दाग भी दामन का धोने ना दिया,
कंधे तो जरूर दिए उस बेवफा ने मुझे
पर रोना चाहा तो रोने ना दिया .

दर्द कम करने की दवाई बनाता हूँ,
अपनी कविता की घुट्टी पिलाता हूँ,
यकीं ना हो तो उस बेवफा से पूछिए
मै किस तरह मुर्दे जिलाता हूँ

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"



कोई टिप्पणी नहीं: