रविवार, 13 मार्च 2011

मेरा दर्द तुम न समझ सके

उनको मनाने हम जहा  जहा निकले,
वक़्त के काफिले  तक हमसे खफा निकले,
हुस्न और धोखा संग देता है क्या खुदा?
जिस जिस पे दिल आया सब बेफवा निकले.


रोशन  थे जो चिराग  बेनूर होते चले,
हम हारे थे जिंदगी से मजबूर होते चले,
जाने किस बात पे इतना अहम् था उन्हें,
जितना हम पास गए उतना वो दूर होते चले,


कारवा मेरे हमदर्दों का छटता रहा 
हर पल बेनूर सा कटता रहा,
वक़्त की की नजाकत देखी गौर से जनाब,
वो पतंग सी उडती रही मै डोर सा कटता रहा 


मेरे लिखे पन्ने मुझे ख़ाक में ले गए,
तन्हाएओ से भरी रात में ले गए,
उनसे दूर होकर मर गया मै,
पर कुछ दोस्त मेरा जनाजा उनकी बरात में ले गए


अक्सर कुछ तारे कमाल करते है,
गरीबो की दुनिया मालामाल करते है,
मेरे सारे जवाब में नाम उनका है वो जानते है,
फिर भी क्यों वो मुझसे सवाल करते है,


एक कसम भी प्यार की खा न सके,
कुछ लब्ज जुबान पे आ न सके,
बहता पानी , उचा पुल ठंडी हवा,
हम इन्तजार करते रहे,
और वो आ न सके,


कुछ अदा पुरानी थी, कुछ अंदाज पुराने थे,
कुछ जख्म पुराने थे, कुछ राज पुराने थे,
हम वफ़ा वफ़ा और वफ़ा करते रहे, भूल गए,
वो दगाबाज़ पुराने थे ...






प्रभात कुमार भारद्वाज 
9555133845

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