बुधवार, 30 मार्च 2011

मै भी छीन लेता चाँद.....


मै भी छीन लेता चाँद , गर इतना आसान होता
सत्कार करता खूब, गर मेरा मेहमान होता
हर हद्द तोड़ देता,गर आम इंसान होता
मर ही  जाता ना, और क्या नुक्सान होता

जमीन पे होता तो किसी गैर की मुस्कान होता
महबूब के सजने का सामान होता
किसी आशिक की आजमाईश की शाम होता,
लाइलाज शराबी के होठो का जाम होता
तू नूर ए खुदा का दूजा नाम होता
किसी की गीता तो किसी का कुरान होता

मै भी छीन लेता गर इतना आसान होता
खुद खुदा ही  भेट कर देता तो क्या कम उसका एहसान होता
मै भी छीन लेता गर इतना आसान होता
मर ही जाता ना और क्या नुक्सान होता.................................

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना "

1 टिप्पणी:

Rahul Yadav ने कहा…

tremendous lines Mr. Prabhat___ and I really appreciate your conscience and imagination__ awesome poem Yaar